रविवार, 15 अप्रैल 2012

अनुपम बनने गया हूँ निकल

अनुपम बनने गया हूँ निकल
करके मनन अटल,
परीक्षा का है ये पल
डर है हो न जाऊ विफल !

सर्वप्रिये बनने गया हूँ निकल
अब हँसे चाहे जलद भी
रोके चाहे सुगंध जलज की
साथ देना मेरा हे अनल !

माना है अचला को अवलम्ब
चाहता हूं नहीं हो अब विलम्ब
आज है और नहीं देखा कल
साथ देना मेरा हे अचल !

नहीं होवुंगा में अधीर,
मेरा मन मुझसे भी वीर
बनू पादप, दूँ छावं और टूटे मीठे फल,
बशर्ते आप मुझे दो सही मिट्टी और जल !