दक्षिण भारत राष्ट्रमात- बेंगलौर में प्रकाशित 22-07-12
कुंठित है आनंद मन, उठे दिल में गम,
देख इंसान का इंसान पर सितम !
रौंदे पेड़ो को और करे प्राणवायु कम ,
पर पेड़ बचावो अभियान चलाये हम,
नदियों में पानी और कूड़ा हुवा एक सम,
पर चलाये वाटर फिल्टर का सिस्टम,
देख इंसान का इंसान पर सितम !
और जताए की विज्ञान का छाया परचम,
गज़ब गाडियों का धुवाँ बना अजब यम,
तेज़ दोड़ की होड़ में जिंदगानी करे कम,
देख इंसान का इंसान पर सितम !
आज किताबो का अम्बार नहीं कम,
फिर भी नव पीढ़ी के संस्कार होते कम,
पल-पल में बनते बिछुड़ते साथी हमदम,
हुवे ढोंगी-पाखंडी लोग भारी-भरकम,
देख इंसान का इंसान पर सितम !
अब सादगी और शुद्धता का बाज़ार पड़ा नरम,
और मिलावट का बाज़ार चले गरम,
तकनिकी छाई और उजड़ रही कलम,
कुंठित है आनंद मन, उठे दिल में गम,
देख इंसान का इंसान पर सितम !
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