रविवार, 19 अगस्त 2012

क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा

पथ पथ नभ छूते , व्रक्ष है मेरे कर,
जिन्हें काटके तुम सजाते हो अपना घर,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !

लहू मेरा ये बहती जल समाये नदियाँ,
प्यास बुझा जिन्दा रखु तुझको सदियाँ,

क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !

भांति भांति के पर्वत दिल है मेरा गहरा,
तोडके, छोडके, बनाते हो आलय तुम्हारा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !


रंग बिरंगे भाव मेरे ये फूल और कलियाँ,
अर्पण देव,नर,नार पर और रखु सुन्दर तेरी गलियाँ,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !

बहुरंगी पसरी माटी है मेरी अदा,
धान लहराने बनूँ आँचल तेरा सदा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !

सच मानो तुम मेरा ही परिवार प्यारा,
गोद में खेलते हो और मै ही शांत काया का सहारा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें