पथ पथ नभ छूते , व्रक्ष है मेरे कर,
जिन्हें काटके तुम सजाते हो अपना घर,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
लहू मेरा ये बहती जल समाये नदियाँ,
प्यास बुझा जिन्दा रखु तुझको सदियाँ,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
भांति भांति के पर्वत दिल है मेरा गहरा,
तोडके, छोडके, बनाते हो आलय तुम्हारा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
रंग बिरंगे भाव मेरे ये फूल और कलियाँ,
अर्पण देव,नर,नार पर और रखु सुन्दर तेरी गलियाँ,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
बहुरंगी पसरी माटी है मेरी अदा,
धान लहराने बनूँ आँचल तेरा सदा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
सच मानो तुम मेरा ही परिवार प्यारा,
गोद में खेलते हो और मै ही शांत काया का सहारा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
जिन्हें काटके तुम सजाते हो अपना घर,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
लहू मेरा ये बहती जल समाये नदियाँ,
प्यास बुझा जिन्दा रखु तुझको सदियाँ,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
भांति भांति के पर्वत दिल है मेरा गहरा,
तोडके, छोडके, बनाते हो आलय तुम्हारा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
रंग बिरंगे भाव मेरे ये फूल और कलियाँ,
अर्पण देव,नर,नार पर और रखु सुन्दर तेरी गलियाँ,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
बहुरंगी पसरी माटी है मेरी अदा,
धान लहराने बनूँ आँचल तेरा सदा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
सच मानो तुम मेरा ही परिवार प्यारा,
गोद में खेलते हो और मै ही शांत काया का सहारा,
क्यूँ करते हो फिर यूँ किनारा,
माँ वसुंधरा ने तुझको है पुकारा !
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