शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

रजनीगंधा

रजनीगंधा फूल सी है मेरी मुस्कुराहटें
अक्सर लोग इसे अपनाते
और खुशियों को युहीं बाँट ले जाते !

पर होता हूँ जब मैं ग़मगीन
यही यार-प्यार, रिश्ते-नाते
छुपते-छिटकते रह जाते है इन-मिन !
जिन्दगी का क्या यही उसूल है
सिर्फ मेरी हँसी से उनके पैसे वसूल है
और दुःख में उनकी और निगाहे करुँ तो धुल है !
गर मेरी ये भूल है तो , ये मैं नहीं दोहराऊँगा,
सिर्फ मेरी खुशी नहीं बाँटुगा, और न उन्हें हँसाऊँगा,
मेरी ख़ुशी को अपनाने वालों को मेरे गम भी करने कबूल है

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