शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

वो सुनामी का शोर

 एक मनभावन भौर
सागर कर रहा था शोर
शायद उसका ईशारा था
अपनी सखी नदियाँ की और !!
पहले तो बलखाती लहराती
छूती थी सागर का हर छोर
अब हो चली है दुबली पतली,
कौन बना है इसकी खुशी का चोर !!!
शायद इन्सा की भूख से सुख,
दम तोड़ती, सह रही अन्याय घोर,
देख इसे रोष भर रही है सागर की टोर,
और सुना रहा है वो सुनामी का शोर !!!!

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