मंगलवार, 18 अगस्त 2015

जिंदगानी सजेगी...

जिंदगानी सजेगी, समझना मेरे पोषको के वचन,
कुंठित न होना ये तो पुरानी रीत और चलन,
डगमगाना मत सजनी, संग तुम्हारे आनंद मन !

 माना खुशियाँ पूरी नहीं, पर नहीं कोई गम,
मानो परिवार को, घुन्घरुवों की छम-छम,
साथ चलेंगे तो बजेंगे, कभी अती कभी कम !

 बेटा या बेटी लक्ष्य अगला, जिंदगी के कई रंग,
घर प्यारा, कृतव्य अपना, चलना आप संग-संग,
तभी जीत पाएंगे, ये रीती-रिवाजो की जंग !

जग में माता पिता और आप का नहीं कोई सम,
दिया तन-मन-धन और सोचू हो जाए न कुछ कम,
यह सोचकर मन भरे और छुपकर आँखे होती नम !

सपना नया नहीं, पर मेरे सपनो के कई रंग,
अक्षय हर्ष सी प्रतिष्ठा बढे, रिद्धि-सिद्धि रहे संग,
सुहाना हो मौसम और हर ऋतु का संग !

सजनी आप बने रहना युही साथी-हमदम,
सहते रहना हमारी आदतो को हरदम,
और अच्छे है अगर, तो मांगना जनम-जनम !

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