शनिवार, 29 अगस्त 2015

ये कौनसा दौर है मेरा इस शहर में ?


ये कौनसा दौर है मेरा इस शहर में ?
पेड़ो की जगह खड़े है हवाई पुल और खंबे,
इर्दगिर्द न मुस्कुराने वाले भिखमंगे,
धर्मो का धन्धा नित देता अचंभे,
अपनों में न जाने कब हो जाते दंगे !

ये कौनसा दौर है मेरा इस शहर में ?
आरक्षण की मांग विकास को लगाती अड़ंगे
गुणवान हस्तियाँ नभ-धरा के बीच टंगे,
पराई नार को घूरते फिरते लफंगे,
सच के साथी भुखे और चोरो के जिगर चंगे !

ये कौनसा दौर है मेरा इस शहर में ?

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