एक आदमीं जब पेड़ काटने आया तो ...पेड़ कुछ ऐसा बोला ......
क्या कर रहे हो मेरे सखा,
क्यों काट रहे हो मेरी शाखा ?
बसाकर घर में गमला,
क्यों कर रहे हो मुझपे हमला ?
आँखों के सामने बसा ये गाँव,
पर समझ से परे तुम्हारा ये दांव !
क्या हुई मुझसे भूल,
खाकर धरा की धुल,
तुझको दिया फूल !
हेत रखा तुमसे हर पल,
और मेघो से लेके जल,
तुझको दिया मीठे फल !
जब भी तपे तुम्हारे पाँव,
मैंने दी है मन से छाँव,
हटाया तुम्हारे मन का तांव !
आँखों के सामने बसा ये गाँव,
पर समझ से परे तुम्हारा ये दांव !
क्या कर रहे हो मेरे सखा,
क्यों काट रहे हो मेरी शाखा ?
बसाकर घर में गमला,
क्यों कर रहे हो मुझपे हमला ?
आँखों के सामने बसा ये गाँव,
पर समझ से परे तुम्हारा ये दांव !
क्या हुई मुझसे भूल,
खाकर धरा की धुल,
तुझको दिया फूल !
हेत रखा तुमसे हर पल,
और मेघो से लेके जल,
तुझको दिया मीठे फल !
जब भी तपे तुम्हारे पाँव,
मैंने दी है मन से छाँव,
हटाया तुम्हारे मन का तांव !
आँखों के सामने बसा ये गाँव,
पर समझ से परे तुम्हारा ये दांव !