रविवार, 28 अप्रैल 2013

मेरे सखा-बोला एक पेड़ ...

एक आदमीं जब पेड़ काटने आया तो ...पेड़ कुछ ऐसा बोला ......

क्या कर रहे हो मेरे सखा,
क्यों काट रहे हो मेरी शाखा ?

बसाकर घर में गमला,
क्यों कर रहे हो मुझपे हमला ?

आँखों के सामने बसा ये गाँव,
पर समझ से परे तुम्हारा ये दांव !
क्या हुई मुझसे भूल,
खाकर धरा की धुल,
तुझको दिया फूल !

हेत रखा तुमसे हर पल,
और मेघो से लेके जल,
तुझको दिया मीठे फल !

जब भी तपे तुम्हारे पाँव,
मैंने दी है मन से छाँव,
हटाया तुम्हारे मन का तांव !


आँखों के सामने बसा ये गाँव,
पर समझ से परे तुम्हारा ये दांव !

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

हम दो हमारे दो और बढ़ता संसार

अट्टालिकाओं में सिमटा परिवार,
हम दो हमारे दो होता अब करार,
समझ से परे ये बढ़ता संसार !

राहो में जहर उगलते स्कूटर, कार,
हम दो हमारे दो निगलने को लाचार,
समझ से परे ये बढ़ता संसार !

पाठशालाएं बनी अब लूट का बाज़ार,

हम दो हमारे दो पढ़कर जताएं आभार,