बुधवार, 5 अक्टूबर 2011

"गाँधी और लाल का देश बीमार"


कैसी अजब-गजब की है सरकार,
मंत्री-नेता लूट रहे देश भरमार,
मुखिया चुप है, अर्थशास्त्र का जानकार !

कालाधन लाना है रामदेव का विचार,
सुन बोखला उठी मनमौजी सरकार
रात को किया हजारो पर अत्याचार !
अन्ना जोर से बोले मिटावो भ्रष्टाचार,
कहा भारत को है लोकपाल की दरकार
विफल रहे कपटी, मनमोहन लाचार !

महंगाई का रहा नहीं कोई आकार,
गरीब झेल रहा कष्ट बेसुमार,
बेपरवाह उतर दे रही सरकार !
किसानो का हुवा न सपना साकार,
देखा नहीं विकास भी जोरदार,
सोने की चिडीया बना चोर बाज़ार !

छल-कपटी की हुई तेज धार,
उग्रवाद बना रहे अपना आधार,
गीता-कुरान का हो रहा बंटाधार !
पुलिस, वकील नहीं रहे ईमानदार,
पेड़ व पशुवो का हो रहा संहार,
साख गीर रही, गाँधीदेश हुवा बीमार !

आवो करे अटल मन से करार,
माने लालबहादुर, गाँधी का आधार,
मेहनत व अहिंसा से करके वार,
जगाये जन-चेतना, फेलाए प्यार,
सुनिश्चित करे चोर नेताओ की हार
माने भारत को शीर्ष पर संसार
यही सच्चे आनंद मन का सार !

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