रविवार, 1 जनवरी 2012

"चले थे कमाने"

निकले थे गाँव से कमाने परदेश,

मैला थैला, पहना था पुराना वेश !

मेहनत के बाद हो गए थे फ़ैल,

बापू ने चढ़ा दिया कमाने रेल !

उतरा दिल्ली करके ऊपर केश,

वाह रे, देखे तरह तरह के वेश !

पूछा पता, मांग लिए रूपये दस,

और कहा, जाती वहां नौ न.बस !

चढ़ गए बस, बैठे कस कर थैला,

नींद आ गयी लगते लगते रैला !

चोरो ने मार लिए नींद में पैसे,

पैसे तो गायब,जायेंगे घर अब कैसे !

जैसे तैसे सारा रास्ता किया पार,

सुनाया रिश्तेदारों को सफ़र का सार !

लग गयी नौकरी, सेठ का बड़ा कारोबार,

पर हमें कुछ न आता, मिलते रूपये हज़ार !

आठ महीने दर्द से कर दिए पार,

फिर याद आने लगे गावं के यार !

आठ महीने में, रूपये बचा लिए थे पुरे हज़ार,

ख़रीदे कुछ कपडे, किया गावं का विचार !

पुहुँचे गावं, माँ ने किया ढेर सा प्यार,

बापू ने पूछा कुछ कमाया या था बेकार !

हमने कहा वहां रूपये मिलते थे हज़ार,

मैंने सोचा, इससे अच्छा करेंगे खेती

......आनंद से काटेंगे सुखी संसार !

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