शनिवार, 13 जुलाई 2013

बनाये वन-उपवन का अब राष्ट्रगान !


वन उपवन में बसी करामात,

समायें फलो-फूलो की सौगात,
इन्सां जानते हुवे भी करता आघात !



वन उपवन में बसी नाचती टहनियाँ,
समायें झूमते झरने, कहानी कहती नदियाँ,
पर इन्सां आमदा है करने को गलतियाँ !

वन उपवन में बसा पुर्ण विज्ञान,
समायें बिगडती हवा, दावा का समाधान,

जब-तब-अब भारत




जब तूफ़ान अंग्रेज शासन का आया,
तब एक हो भारतीयों ने उसे भगाया,
अब बढ़ता पश्चिमी संस्कृति का साया,
इसे अपनाते रति भर भी मन ना डगमगाया !

तब संत होते जन, समाये निर्मल काया,