वन उपवन में बसी करामात,
समायें फलो-फूलो की सौगात,
इन्सां जानते हुवे भी करता आघात !
वन उपवन में बसी नाचती टहनियाँ,
समायें झूमते झरने, कहानी कहती नदियाँ,
पर इन्सां आमदा है करने को गलतियाँ !
वन उपवन में बसा पुर्ण विज्ञान,
इन्सां ने यंत्र लाखो बनाये, बना न पाया वन नादान !
वन उपवन ही सर्व प्राणियों का आधार,
वन उपवन की नयाँ अब मझधार,
इन्सां का जीवन बनाने क्यों हो ये तार-त़ार !
इन्सां को करना होगा अब नया सवेरा,
दूर करना होगा हमें ये बढ़ता अँधेरा,
नहीं तो उजड़ेगा अपना ही बना बसेरा !
इन्सान की अगर बचानी है जात व् जान,
तो वन उपवन को माने देश की शान,
बनाये वन उपवन का अब राष्ट्रगान !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें