शनिवार, 13 जुलाई 2013

बनाये वन-उपवन का अब राष्ट्रगान !


वन उपवन में बसी करामात,

समायें फलो-फूलो की सौगात,
इन्सां जानते हुवे भी करता आघात !



वन उपवन में बसी नाचती टहनियाँ,
समायें झूमते झरने, कहानी कहती नदियाँ,
पर इन्सां आमदा है करने को गलतियाँ !

वन उपवन में बसा पुर्ण विज्ञान,
समायें बिगडती हवा, दावा का समाधान,
इन्सां ने यंत्र लाखो बनाये, बना न पाया वन नादान !

वन उपवन ही सर्व प्राणियों का आधार,
वन उपवन की नयाँ अब मझधार,
इन्सां का जीवन बनाने क्यों हो ये तार-त़ार !

इन्सां को करना होगा अब नया सवेरा,
दूर करना होगा हमें ये बढ़ता अँधेरा,
नहीं तो उजड़ेगा अपना ही बना बसेरा !

इन्सान की अगर बचानी है जात व् जान,
तो वन उपवन को माने देश की शान,
बनाये वन उपवन का अब राष्ट्रगान !

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