रविवार, 1 जून 2014

"मुझे कोई नहीं शिकायत"


छाई है आज मुझपे आफत, हाँ छाई है आज मुझपे आफत,
जाना है आज मुझे मिट,छोड़ रहा हूँ मै आपके नाम ये ख़त !

मुझे कोई नहीं शिकायत, तुमसे ओ मानव जीव, 
तुम ही पाले, तुमने ही रखी मेरी नींव !

मै ही नादान सपनो में खोकर, बढ़ता गया अपनी नींव छोड़कर,
और आज खड़ा हूँ तुम्हारी ही राह रोककर !

मान बेठा विधाता को अपना रचनाकार,भूल गया तुम्हारे वो अनेक उपकार,

सपने


मन में रंग बिरंगे सपने,

कई अपनों के, कई अपने,

पूर्णता की आशा से परे,


नन्हे मन में घरोंदा करे !


जैसे ही तारे लेके आती रात,

गुपचुप मन से करते बात,

मन लेके सुख दुःख का बोझ,

समाके रखता इनको रोज !