रविवार, 1 जून 2014

"मुझे कोई नहीं शिकायत"


छाई है आज मुझपे आफत, हाँ छाई है आज मुझपे आफत,
जाना है आज मुझे मिट,छोड़ रहा हूँ मै आपके नाम ये ख़त !

मुझे कोई नहीं शिकायत, तुमसे ओ मानव जीव, 
तुम ही पाले, तुमने ही रखी मेरी नींव !

मै ही नादान सपनो में खोकर, बढ़ता गया अपनी नींव छोड़कर,
और आज खड़ा हूँ तुम्हारी ही राह रोककर !

मान बेठा विधाता को अपना रचनाकार,भूल गया तुम्हारे वो अनेक उपकार,
तुम्ही ही तो देते थे सुरक्षा, जल और आहार !

जाना है आज मुझे कट,  छाई है आज मुझपे आफत,
जाना है मुझे आज हट, छोड़ रहा हूँ मै आपके नाम ये ख़त !
पर हाँ, याद रखना मेरी छाँव,
ये शाखावों पे परिंदों का गाँव,
बिखरे कुसुम जहाँ धरा तू पाँव !
याद रखना प्राणवायु महकती,
कोयल की पियु, चिड़िया चहकती,
और जड़ तले गिलहरी मटकती !
सुनी हो जाएगी ये सुरसरी की तट,
जब मै जावुंगा आज कट,
पर मुझे कोई नहीं शिकायत !!!!!


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