ये शाखावों पे परिंदों का गाँव,
बिखरे कुसुम जहाँ धरा तू पाँव !
याद रखना प्राणवायु महकती,
कोयल की पियु, चिड़िया चहकती,
और जड़ तले गिलहरी मटकती !
सुनी हो जाएगी ये सुरसरी की तट,
जब मै जावुंगा आज कट,
पर मुझे कोई नहीं शिकायत !!!!!
प्रेरक माता और पीता श्री हरीप्रसाद एवं श्रीमति मंजूदेवी दाधीच को समर्पित ! अनुरोध- आओ हिन्दी भाषा को तकनीकी युग मे बढ़ाए !
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