शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !

मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े,
कही भोज में नित रसगुल्ले, कही सूखे टुकड़े,
कही राम-भरत सा प्रेम, कही विभीषण रावन से  उखड़े,
कही विंद्ये हिमाचल वादियाँ, कही धरा के रुहु उखड़े, 
कही पतित करने गंगा बहे, कही नालो से नदियाँ उजड़े !
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !


कही संस्कृति का तन पे श्रृंगार, कही तंग कपड़े,
कही बिन भेदभाव भायपा, कही कश्मीर से लफड़े,
कही लहराते सुन्दर खेत, कही गोदामों में अनाज सड़े
कही अभिलाषा बाकि रहे, कही भरपूर ख़जाने है गड़े !
कही गोबर सिमटे कुटिया, कही ऊँचे महल हीरे जड़े
कही एकता का पाठ पढाये नेता, कही राजनीती के कई धड़े !
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !

ऐसी भिन्नता में एकता देख, दुनिया मुझसे अकड़े,
मुझे डर नहीं, संभालने बंगाल की खाड़ी, हिंद सागर खड़े,
मुझे डर नहीं, संभालने मरुधर, गगन छूता हिमालय खड़े  
मुझे डर नहीं, संभालने हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इस्याई खड़े,
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !

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