दुनियां में कौन सच्चा कौन अच्छा ?
जग में जगमग हँसते दिखे कई चहरे,
पर, चंद के चाल के भाव समझ से परे,
कुछ को पाया अपने ही कलाप में घिरे
और अन्य की आँखों में दिखे राज गहरे !
सांझ को पंहुचा घर तो पाया,
माँ की आँखों में ममता की लहरे,
पीता के भाव सागर से गहरे,
सजनी का श्रृंगार दिल में ठहरे,
मन में आनंद का दीप जला,
घर ही सच्ची दुनियां पता चला,
ग्रहस्थी ही अच्छी, नहीं तो जग ही कहाँ भला,
परिवार प्रेम ही जीवन जीने की कला
परिवार प्रेम ही जीवन जीने की कला !!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें