शनिवार, 19 नवंबर 2011

"एक बी ए"




बहुत कुछ करने को चाहता मन,

ईश्वर ने दिया है अच्छा खासा तन,

भूल से, नहीं दिया है उसने धन !



हमने कर ली थी मुश्किल से बी ए,

फिर भी कहते लोग, तुम क्या किये,

न चले आजकल इंजिनियर, सी ए !



भटकने लगे जगह-जगह डिग्री लिए,

पर, नौकरी के बदले मांगते सब रुपये,

चींता होने लगी, जिए तो कैसे जिए !



बीना नौकरी क्या खाए, क्या पिए,

कहा से लाये रिश्वत के लिए रुपये,

ईश्वर के आगे लम्बे हाथ जोड़ दिए !



पुराना यार मिला, ब्याज पर उधार लिए,

कॉलेज लेक्चरार पद पर अर्जी भर दिए,

और प्रिंसिपल सनमुख कुछ रुपये कर दिए !



खुश होकर, वो फट से हामी भर दिए,

कल से आ जाना कहकर विदा कर दिए,

सजकर दुसरे दिन हम कॉलेज पहुँच गए !



जाते ही प्रिंसिपल ने रुपये वापस धर दिए,

कहा, क्षमा करे आप कॉलेज के अब न रहे,

"इन" साहब ने आपसे ज्यादा हा दिए !







बुधवार, 16 नवंबर 2011

"पंख होते तो"


पंख होते तो, नभ की और उड़ जाता,
विष्णु से चक्र मांग लाता !
कर वार दुष्टों पर, करता उन्हें भीर,
कहलाता में नव युग का एक वीर !

पंख होते तो, नभ की और उड़ जाता,
शिव से कमंडल मांग लाता !
हर पीड़ित का रोग मिटा कर,
कहलाता में महान डॉक्टर !


पंख होते तो, नभ की और उड़ जाता,
ब्रह्मा से रचना विधी मांग लाता !
कलयुगी मानव को पशु बनाता,
ब्रह्मा को पल में अचंभित कर डालता !



पंख होते तो, नभ की और उड़ जाता,
गणपति से अपनी तक़दीर पूछ आता !
छोटी हाथ लकीरे, हो जाती बड़ी तक़दीर,
हर जगह, हर और, छपती मेरी तस्वीर !

शनिवार, 12 नवंबर 2011

जनता महानो में महान



नर नारी का हो सम्मान,संस्क्रती का रुके नुक्सान
शिक्षा का हो प्रकाश, भ्रष्टाचार का हो नाश !
बेरोजगारी हो दूर, घर में पानी हो भरपूर,
बीजली की न हो कटौती, मुद्रा भण्डार में हो बढौती !
न्याय वंचित न रहे इंसान, सरहद पर रुके घमाशान,
और देश में कम न हो अनाज, ऐसा करे सरकार राज
नहीं तो हर नेता रखे ध्यान, जनता है महानो में महान !


शनिवार, 5 नवंबर 2011

गाय माँ

गाय माँ गौ अष्टमी पर विशेष रचना

खाकर घास, देती दूध ख़ास
क्रष्ण प्यारी, तन देवो का वास
गौमूत्र करे व्याधियों का नाश
गोबर से बने मानव निवास !
फिर भी कुछ लोग है बदमाश,
माता को काटे खाने मांस,
गौं को ज्यादा नहीं तुमसे आस,
बस तुम बुझालो मांसहारी प्यास,
और करो गौधन की रक्षा ख़ास !
तुम देदो जो है तुम्हारे पास
बनावो भारत को गौधन वास
फिर से क्रष्ण-गोपियाँ रचाए रास
कल्पना नहीं सच्ची आनंदमय आस !

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

अस्थि दानी दधीची ऋषि


(दक्षिण भारत राष्ट्रमात-बेंगलूर, हिंदी दैनिक से ०५/०९/११ को प्रकाशित)

एक हुवे ऋषि महात्यागी, बलशाली, ज्ञानी
थे पौत्र ब्रह्मा के, ऋषि अथर्वा की निशानी
भाद्र मास की शुक्ल अष्टमी जन्म जगजानी
नाम रखा दधिची, बड़े तेजश्वी, बलशाली !

ऋषि दधिची की वेदवती जीवन संगनी बनी
महा-शिव रचित शरश्वेत तीर्थ तपस्थली बनी
एक बार ऋषि से मित्र राजा छुवा की ठनी
प्रसंग था ब्राहमण श्रेष्ठ या क्षत्रिये बलवानी !
पहले जीता राजा, पाए दधिची शुक्रचार्ये से संजीवनी
तब दधिची ने की शिव आराधना, बने वज्र्शाली
जब हारे छुवा और विष्णु, हुवे ब्राह्मन गौरव-शाली
नारायण कवच प्रदान कर, विष्णु ने ब्रह्मशक्ति जानी !

सब देख इन्द्र हुवे प्रसन्न, मधुविधा दे दिनी
वचन पाया रखेगे गुप्त, न जाने दूसरा प्राणी
लोकहित में ऋषि ने अश्वनीकुमारो की बात मानी
लगा अश्व सर, कुमारो को मधुविधा देने की ठानी !
एक बार वज्रास्त्र दधिची को सौंप देवो ने आज्ञा लीनी
सहस्त्र वर्ष उपरांत, दधिची ने शस्त्र शक्ति थी पि ली
व्रतासुर ने मचा कोहराम, जब देवो की शक्ति छिनी
तब इन्द्र ने दधिची से वज्रास्त्र की याचना किनी !

दधिची ने वज्र शक्ति तो पिली, पर देवो को अस्थि दिनी
अस्थिदान पूर्व देव, तीर्थ, ऋषि दर्शन विनती किनी
फिर दर्शन धरा नैमिशारण्ये-मिश्रित तीर्थ स्थली बनी
व्रतासुर मरा, जब दधिची की अस्थियो से वज्रशक्ति बनी !
पुत्र पिप्पलाद हुवे, दधिची बने विश्व प्रथम देह्दानी,
आनंद मन की रचना, दधीचो में इतिहास बनी !