गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

मही 2050 (वसुंधरा 2050)

अब वैज्ञानिक हुवा परमेश्वर,
सब सेर करने जाते अम्बर,
एक लगे यामिनी व वासर !

अब दिन हुवा दिनकर,
उर्जा विहीन इसकी कर,
प्रभात में चमके निशाकर !

अब केसरी रहा नहीं निडर,
हय हारता बाज़ी हर,

नई दिवाली


आओ दिवाली का नवदीप जलाते है
युग को फिर से दिवाली अर्थ बताते है !

अब पटाखों का शोर नहीं,
चंचल मन को समझाते है
प्रक्रति का साथ निभाते है,
शांति का दीप जलाते है !

अब जहर का कहर नहीं,
घर की रसोई अपनाते है,

दधीची

हमारे पोषक दधीची हुवे प्रथम देह्दानी,
फिर हमें अपनी ही क्षमता क्यों छुपानी ? 
अब ये बात हमें पुरे जहाँ में पहुंचानी,
बढे कदम और सुने एक-दूजे की जुबानी !

शरीर देकर परहित साधनेवाले की हम चर्म,
फिर क्यों आज भूले हम त्याग का महाकर्म ?
द्वेष, भौतिकता को त्यागे, मह्रिषी से रखे शर्म,
बढे कदम और परहित,परलाभ को माने धर्म !
हम देव विष्णु को हरानेवाले की संतान,