गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

मही 2050 (वसुंधरा 2050)

अब वैज्ञानिक हुवा परमेश्वर,
सब सेर करने जाते अम्बर,
एक लगे यामिनी व वासर !

अब दिन हुवा दिनकर,
उर्जा विहीन इसकी कर,
प्रभात में चमके निशाकर !

अब केसरी रहा नहीं निडर,
हय हारता बाज़ी हर,


बना सबसे तेज़ कुंजर !

अब नीर न समायें जलधर,
सूरा के बने पुष्कर,
सलिल पाना हुवा दुष्कर !

अब वन खोये, छाये उपवन इधर,
अचल रहा नहीं भूधर,
रेगिस्तान बना रत्त्नाकर !

अब आदर संस्कृति का बचा न अक्षर,
गरल समायें कलेवर,
और घर-घर  होता समर !

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