सब सेर करने जाते अम्बर,
एक लगे यामिनी व वासर !
अब दिन हुवा दिनकर,
उर्जा विहीन इसकी कर,
प्रभात में चमके निशाकर !
अब केसरी रहा नहीं निडर,
हय हारता बाज़ी हर,
बना सबसे तेज़ कुंजर !
अब नीर न समायें जलधर,
सूरा के बने पुष्कर,
सलिल पाना हुवा दुष्कर !
अब वन खोये, छाये उपवन इधर,
अचल रहा नहीं भूधर,
रेगिस्तान बना रत्त्नाकर !
अब आदर संस्कृति का बचा न अक्षर,
गरल समायें कलेवर,
और घर-घर होता समर !
एक लगे यामिनी व वासर !
अब दिन हुवा दिनकर,
उर्जा विहीन इसकी कर,
प्रभात में चमके निशाकर !
अब केसरी रहा नहीं निडर,
हय हारता बाज़ी हर,
बना सबसे तेज़ कुंजर !
अब नीर न समायें जलधर,
सूरा के बने पुष्कर,
सलिल पाना हुवा दुष्कर !
अब वन खोये, छाये उपवन इधर,
अचल रहा नहीं भूधर,
रेगिस्तान बना रत्त्नाकर !
अब आदर संस्कृति का बचा न अक्षर,
गरल समायें कलेवर,
और घर-घर होता समर !
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