
युग को फिर से दिवाली अर्थ बताते है !
अब पटाखों का शोर नहीं,
चंचल मन को समझाते है
प्रक्रति का साथ निभाते है,
शांति का दीप जलाते है !
अब जहर का कहर नहीं,
घर की रसोई अपनाते है,
नकली मिठाईयां जलाते है,
राम की जीत का पर्व मनाते है !
अब मधुशाला का मधु नहीं,
सादगी का नशा चढाते है,
कुप्रथाओं की छड़ी जलाते है,
राम-सीता मिलन पर्व मनाते है !
अब चौराओं पर जूवा नहीं,
धर्म रक्षा की कथा सुनाते है
ईमानदारी की लौं जलाते है
पुरषोतम की झाँकिया सजाते है !
अब गगन में गाड़ियों का विष नहीं,
पैदल ही मुबारक-तौफा पहुंचाते है,
मुस्कान से खुशनूमा नूर फैलाते है,
राम अयोध्या आगमन का पर्व मनाते है !!
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