
कौनसे युग के दानियों से पाला पड़ा है !
महल खड़े करे, देकर अपना नाम,
पर भूखे-बिलखते गरीबो से अंजान,
रोटीवाले पिंजरे को ताला जड़ा है !
कहने को अमीर सेवक महान
पर सब्जीवाले से कम करवाते दाम
करते अन्न भगवान किसान को नुकसान
समझ से परे ऐसे दानियों का काला धड़ा है !
हर गली में इंसान लूला-लंगड़ा है
पर अमीर सेवक तो, पर्चे में अपना नाम ढूंढने
मंच पर अपना नाम सुनने
स्थिर होकर खड़ा है अड़ियल सा अड़ा है,
कौनसे युग के दानियों से पाला पड़ा है !
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