हर सामान सज़ा है
आज के घरानों में,
पर किस्तों व् किरायों से लजा है !
यह सामान,
आता है कुछ पल की,
खुशियाँ लेकर,
देता है फिर कल की
हरपल फ़िकर !
यह सामान,
कुछ को भुलवा देता है
प्रियवर का प्यार,
माँ-बाप का दुलार,
कुछ को तो दिला देता है
जिन्दगी से हार ! 
फिर भी हर सामान सजा है
बस कुछ किस्तों व् किरोयों से लजा है !
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