प्रेरक माता और पीता श्री हरीप्रसाद एवं श्रीमति मंजूदेवी दाधीच को समर्पित ! अनुरोध- आओ हिन्दी भाषा को तकनीकी युग मे बढ़ाए !
गुरुवार, 20 दिसंबर 2012
दधीची
हमारे पोषक दधीची हुवे प्रथम देह्दानी,
फिर हमें अपनी ही क्षमता क्यों छुपानी ?
अब ये बात हमें पुरे जहाँ में पहुंचानी,
बढे कदम और सुने एक-दूजे की जुबानी !
शरीर देकर परहित साधनेवाले की हम चर्म,
फिर क्यों आज भूले हम त्याग का महाकर्म ?
द्वेष, भौतिकता को त्यागे, मह्रिषी से रखे शर्म,
बढे कदम और परहित,परलाभ को माने धर्म !
हम देव विष्णु को हरानेवाले की संतान,
रविवार, 19 अगस्त 2012
मंगलवार, 14 अगस्त 2012
आपको आजादी की शुभकामनाएँ
मै भारत आजाद, आनंद बताएँ
आपको आजादी की शुभकामानाएँ !
महंगाई की फेलती बलशाली भुजाएँ,
भूख-कुपोषण की विकराल निघाएँ,
आपको आजादी की शुभकामानाएँ !
कश्मीर पर निश-दिन सुने धाएँ-धाएँ,
आतंकी खुशियों की काटे सजाएँ,
शनिवार, 4 अगस्त 2012
"इंसान पर सितम "
दक्षिण भारत राष्ट्रमात- बेंगलौर में प्रकाशित 22-07-12
कुंठित है आनंद मन, उठे दिल में गम,
देख इंसान का इंसान पर सितम !
रौंदे पेड़ो को और करे प्राणवायु कम ,
पर पेड़ बचावो अभियान चलाये हम,
नदियों में पानी और कूड़ा हुवा एक सम,
पर चलाये वाटर फिल्टर का सिस्टम,
देख इंसान का इंसान पर सितम !
तबाह करे दुनिया बनाके अस्त्र और बम,
उठ जा प्यारे !
यह पंक्तियाँ आजकल देरी से उठने की आदत दर्शाती हुई सबसे जल्दी उठकर सुन्दर वातावरण का आनंद उठाने को ललचाने का प्रयास है !
यह कविता "शब्द" गोष्ठी के मंच पर प्रस्तुत की गयी ! शब्द गोष्ठी श्रीमती सरोजा व्यास का एक सफल प्रयास है जो रचनाकारों को विशेष स्थान देता है !
अँधेरा दूर करके निकल आया भास्कर,
रजनी के भूप मयंक को छोड़कर,
सुरसरी पर अपनी किरणे बिखेर कर,
कौमुदी फैला मानो कर रहा है समर,
अरे ! हरी, तुरंग, कैकी, भर्मर,
अब तो देखो अपने चक्षु खोलकर !
शुक्रवार, 3 अगस्त 2012
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े,
कही भोज में नित रसगुल्ले, कही सूखे टुकड़े,
कही राम-भरत सा प्रेम, कही विभीषण रावन से उखड़े,
कही विंद्ये हिमाचल वादियाँ, कही धरा के रुहु उखड़े,
कही पतित करने गंगा बहे, कही नालो से नदियाँ उजड़े !
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !
कही संस्कृति का तन पे श्रृंगार, कही तंग कपड़े,
गुरुवार, 24 मई 2012
खोजूं "सत्यमेव जयते" वाला आमीर
पेट्रोल रेट बढ़ने के बाद आनंद दाधीच (बहड़) द्वारा लिखी गयी पंक्तियाँ ! आनंद दाधीच की सरल-भाषा वाली चुनी गयी कविताए "दक्षिण भारत" हिंदी दैनिक में प्रकाशित होती है ! इनकी कवितावो का ब्लॉग www.ananddadhich.blogspot.com है !
मै तो हूँ आप जैसा एक बंदा
जब झेलू कसता पेट्रोल का फंदा
साफ़-सुथरा जामना लागे गंदा
मन करे है बन जावूँ स्कन्दा !
ये तो दिशाहीन राज की करामात,
लूट-महंगाई बढे है स्रिफ दिन-रात,
राम-अन्ना जैसे करे विद्रोह तो देवे लात,
येही सच्चे भारत निर्माण के हालात !!
मन के मोहन को फिर देके मौका,
जनता ने जनता से किया धोखा,
कुछ भी नहीं हो रहा अनोखा,
मंत्री चलाये भारत निर्माण की नौका !!!
आजादी बाद देखि न ऐसी सरकार,
करे-सिखाये उच्कोटी का भर्ष्टाचार,
जताए लोकपाल-कालाधन विषय है बेकार,
सोचिये जरा ! भारत निर्माण का आधार !!!!
खोजूं हूँ "सत्यमेव जयते" वाला आमीर,
परखू कष्ट सुलझाने कितना वो गंभीर,
महंगाई-लूट हटाने खींचे लक्ष्मण लकीर,
तब है भारत निर्माण, पुकारे भारत भाग्य शरीर !!!!!
Meanings of used words-स्कन्दा- god of war, करामात-magic, लात-leg, हालात-situation, नौका-boat, उच्कोटी-highlevel, आधार-base, आमीर-name of bollywood celebrity, गंभीर-serious
रविवार, 15 अप्रैल 2012
अनुपम बनने गया हूँ निकल
अनुपम बनने गया हूँ निकल
करके मनन अटल,
परीक्षा का है ये पल
डर है हो न जाऊ विफल !
सर्वप्रिये बनने गया हूँ निकल
अब हँसे चाहे जलद भी
रोके चाहे सुगंध जलज की
साथ देना मेरा हे अनल !
माना है अचला को अवलम्ब
चाहता हूं नहीं हो अब विलम्ब
आज है और नहीं देखा कल
साथ देना मेरा हे अचल !
नहीं होवुंगा में अधीर,
मेरा मन मुझसे भी वीर
बनू पादप, दूँ छावं और टूटे मीठे फल,
बशर्ते आप मुझे दो सही मिट्टी और जल !
रविवार, 26 फ़रवरी 2012
भक्ति के प्रकार
आईये करे बात भक्ति की, जाने विचार,
अनेक विशलेषण हुवे पर है मुख्य चार,
तामस, राजस, सात्विक, निर्गुण है प्रकार !
पहले जानिये तामस भक्ति का सार,
वो भक्ति जिसमे दिखावा और अहंकार,
उदेश्य दूजे को पीड़ा, करना वचनों से वार !
राजस में सिर्फ अपनी भलाई अपार,
करोडो खर्च करे, शोभनिये देव श्रृंगार,
पर चित शुद्ध नहीं, अपनेपन से लाचार !
सात्विक में न अपनापन, न अहंकार,
पर पाप-पुण्य का लेखा करना पार,
इसलिए करे देवो को सत-सत नमस्कार !
निर्गुण भक्ति का सबसे ऊँचा है प्रकार,
न बुराई, न इच्छाये, न पाप-पुण्य का भार,
श्री राम-नाम चित बसे, मिले जीवन आधार !
अनेक विशलेषण हुवे पर है मुख्य चार,
तामस, राजस, सात्विक, निर्गुण है प्रकार !
पहले जानिये तामस भक्ति का सार,
वो भक्ति जिसमे दिखावा और अहंकार,
उदेश्य दूजे को पीड़ा, करना वचनों से वार !
राजस में सिर्फ अपनी भलाई अपार,
करोडो खर्च करे, शोभनिये देव श्रृंगार,
पर चित शुद्ध नहीं, अपनेपन से लाचार !
सात्विक में न अपनापन, न अहंकार,
पर पाप-पुण्य का लेखा करना पार,
इसलिए करे देवो को सत-सत नमस्कार !
निर्गुण भक्ति का सबसे ऊँचा है प्रकार,
न बुराई, न इच्छाये, न पाप-पुण्य का भार,
श्री राम-नाम चित बसे, मिले जीवन आधार !
शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012
"बी कॉम "
उसने पास करली थी बी कॉम
करना था अब कोई शुभ काम
चढ़ गया सर कमाने का गान !
काटे थोड़े दिन गाँव में और
फिर चढ़ गया सिटी बेंगलौर
भटका सिटी का हर छोर
कही पाता "वेकेंसी नो मोर"
कही पूछते आता है 'कंप्यूटर'
नहीं तो तुम 'डू नोट एन्टर'
कही पूछते आती है अंग्रेजी
नहीं तो 'ये लो तुम्हारी अर्जी' !
हो गया भटक भटक कर परेशान
सुनाया अपने यार को पूरा गान
तमन्ना थी मिले अफसरी काम
नहीं तो होगा गाँव जाकर बदनाम
यार ने कहा, पकड़ ले कोई भी काम
मिल जायेंगे रूपये हज़ार-दो हज़ार
नहीं तो भटक कर हो जायेगा बीमार
रहना पड़ेगा फिर जिंदगी भर बेकार !!
गुरुवार, 26 जनवरी 2012
शहर या गाँव ?
गाँव में रहे सब मस्तमोला
शहर में सब आग का गोला !
गाँव की भोर दिखे नाचते मोर
शहर में गुड मोर्निंग का शोर !
गाँव में खेतो की सुहानी लहर
शहर बरपाए गंदगी का जहर !
गाँव की गुड रोटी, हलवे की टक्कर
देंगे शहर के टोस्ट , ब्रेड, बटर ?
गाँव में बसे परिवार में जान
शहर में रहे पत्नी से भी अनजान !
अठारह या अस्सी गाँव में लगे जवान
शहर में गैस, कब्ज़ आदि से परेशान !
गाँव में उठते बैठते सुने राम का नाम
शहर में सुनाये सब अपने ही काम !
गाँव में सुने भजन, सत्संग, दान
शहर में मुख में रखे सब जाम !
क्या अच्छा, क्या बुरा रखे पहचान
आनंद तो वही, जहाँ स्वच्छ भारत महान !
रविवार, 1 जनवरी 2012
"चले थे कमाने"
निकले थे गाँव से कमाने परदेश,
मैला थैला, पहना था पुराना वेश !
मेहनत के बाद हो गए थे फ़ैल,
बापू ने चढ़ा दिया कमाने रेल !
उतरा दिल्ली करके ऊपर केश,
वाह रे, देखे तरह तरह के वेश !
पूछा पता, मांग लिए रूपये दस,
और कहा, जाती वहां नौ न.बस !
चढ़ गए बस, बैठे कस कर थैला,
नींद आ गयी लगते लगते रैला !
चोरो ने मार लिए नींद में पैसे,
पैसे तो गायब,जायेंगे घर अब कैसे !
जैसे तैसे सारा रास्ता किया पार,
सुनाया रिश्तेदारों को सफ़र का सार !
लग गयी नौकरी, सेठ का बड़ा कारोबार,
पर हमें कुछ न आता, मिलते रूपये हज़ार !
आठ महीने दर्द से कर दिए पार,
फिर याद आने लगे गावं के यार !
आठ महीने में, रूपये बचा लिए थे पुरे हज़ार,
ख़रीदे कुछ कपडे, किया गावं का विचार !
पुहुँचे गावं, माँ ने किया ढेर सा प्यार,
बापू ने पूछा कुछ कमाया या था बेकार !
हमने कहा वहां रूपये मिलते थे हज़ार,
मैंने सोचा, इससे अच्छा करेंगे खेती
......आनंद से काटेंगे सुखी संसार !
सदस्यता लें
संदेश (Atom)