सोमवार, 28 मार्च 2016

भारत की होली

मस्त है भारत के रंगो की होली 
बुरा ना मानना यह कहकर
कर देते है बुरा हाल हमजोली !
मनचले सिर्फ गुलाल के बहाने, 
उड़ेल देते है कई रंगो की डोली, 
डराएं सजे संवरो को ये रंगीलो वाली टोली !
कई रंग संग लिए हाथो में, 
कर देते है तंग, रंग के भाभी भोली,
फिर चाहे लगे इन्हे गालियों की गोली !

मस्त है भारत के रंगो की होली, 
ये एक ही दिन ऐसा है जब नारियाँ,
नहीं चमकाती चेहरा और न लगाती लाली !
मस्त है भारत के रंगो की होली, 
पीकर भंग, चढ़ाके जोश उमंग,
मधु हो जाती है मर्दो की बोली !
मस्त है भारत के रंगो की होली, 
ये एक ही दिन ऐसा है,
जब मर्दो की रंगो के बहाने,
भर जाती है मस्ती की झोली ! 

आनंद दाधीच "मंजुषा" (बेंगलौर)

पहले से ही सशक्त है नारी

#55th poem-Dedicated to all #Women on International Women Day. #नारी शक्ति को समर्पित चंद पंक्तियाँ ! विनती कृपया सभी कड़ियाँ पढ़े ! Request to read all stanzas - 

नारी के कोख से जन्म लेने वाला,
नर कौन है ?
नारियों को सशक्त करनेवाला,
जब इन्ही के हाथो में है अगला,
शिवाजी व् प्रताप पलनेवाला,
और इन्ही के हाथो में,
राम व् कृष्ण झुलनेवाला !

देखो पहले से ही सशक्त है नारी,
दुर्गा का रूप हर राक्षस पर भारी,
सरस्वती से ज्ञान पाये उर्वी सारी,
लक्ष्मी के आगे सबने औकात हारी,
'लता' मधुर कंठ कोकिला हमारी,
है खगोलयात्री की 'कल्पना' न्यारी,
साइना व् सानिया का खेल अब भी जारी, 
सुष्मिता, ऐश्वर्या तो दुनिया की प्यारी,
देखो पहले से सशक्त है नारी !

नभ का नाम जब पुरुष ने धरा,
तो #रमणी ने लेली वसुंधरा,
गिरी का नाम जब पुरुष ने धरा,
तो #कामिनी ने बनाली नदियों की धारा,
सूरज का ताप पुरुष ने धरा,
तो #कान्ता ने अपने में चांदनी को भरा !

कह रहा #मंजुषा का लाल #आनंद तारा,
शायद पुरुष को ही ना मिले #किनारा,
समुन्द्र रूपी इस जीवन का,
बिना लिए स्त्री रूपी कस्ती का सहारा,
माँ के हाथ बिना खाना लगे खारा-खारा,
प्रियतम के बिना जीवन लगे हारा-हारा !!!!!

आनंद दाधीच "मंजुषा" (बैंगलोर)

जंग लड़े तिरँगा छोड़

देखो आसमां,देखो धरा,
देखो मानव विचारधारा,
और देखो डूबती परम्परा,
कुछ जातियां बनके भिखारी,
मांगे क्षण भर आरक्षण क्षण-क्षण,
क्यां पाकर बनेंगे वो चरित्रधारी !

जंग लड़े तिरँगा छोड़,
हाथ में पकडे झंडा काला,
देव, घर रिश्ते नाते छोड़,
घोले आसमां में धुवाँ काला,
पटरियां उखाड़, सड़के तोड़,
फैला रहे है विचार विषैला !

क्यूँ करते हो मैली, देश की गलियां,
खा रहे देश का और देते हो गालियाँ,
सुनलो "आनंद" की बोलियाँ,
क़तरा सा दम अगर है तो,
सीमा पर लेलो आरक्षण, 
खाने नापाक दुश्मन की गोलियाँ !
आनंद दाधीच "मंजुषा" बैंगलोर 

आपका वैलेंटाइन ?

आपका वैलेंटाइन ? 😍 🗡🔫🏹

फिर से ये वैलेंटाइन की आहट,
और है तैयार झूठी-ऐंठी  मुस्कुराहट,
होंगे "मुस्कान" के कई वार,
सजग रहना ए दोस्त दिलदार,
कई हो ना जावों तुम शिकार !

उस दिन का कैसा त्यौहार,
जिस दिन मारा गया वैलेंटाइन,
जो करता था छुप के प्यार का प्रचार,
पश्चिमी संस्कृती दो धारी तलवार,
फिर दिखेगी मिथ्या प्यार की लार,   
ए सखा, ए मीत, ए स्नेही, ए यार,
कई हो ना जावों तुम शिकार !!!!

😘 आनन्द दाधीच "मंजुषा"- बैंगलोर 😍