देखो आसमां,देखो धरा,
देखो मानव विचारधारा,
और देखो डूबती परम्परा,
कुछ जातियां बनके भिखारी,
मांगे क्षण भर आरक्षण क्षण-क्षण,
क्यां पाकर बनेंगे वो चरित्रधारी !
जंग लड़े तिरँगा छोड़,
हाथ में पकडे झंडा काला,
देव, घर रिश्ते नाते छोड़,
घोले आसमां में धुवाँ काला,
पटरियां उखाड़, सड़के तोड़,
फैला रहे है विचार विषैला !
क्यूँ करते हो मैली, देश की गलियां,
खा रहे देश का और देते हो गालियाँ,
सुनलो "आनंद" की बोलियाँ,
क़तरा सा दम अगर है तो,
सीमा पर लेलो आरक्षण,
खाने नापाक दुश्मन की गोलियाँ !
आनंद दाधीच "मंजुषा" बैंगलोर
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