शनिवार, 29 अगस्त 2015

ये कौनसा दौर है मेरा इस शहर में ?


ये कौनसा दौर है मेरा इस शहर में ?
पेड़ो की जगह खड़े है हवाई पुल और खंबे,
इर्दगिर्द न मुस्कुराने वाले भिखमंगे,
धर्मो का धन्धा नित देता अचंभे,
अपनों में न जाने कब हो जाते दंगे !

ये कौनसा दौर है मेरा इस शहर में ?
आरक्षण की मांग विकास को लगाती अड़ंगे
गुणवान हस्तियाँ नभ-धरा के बीच टंगे,
पराई नार को घूरते फिरते लफंगे,
सच के साथी भुखे और चोरो के जिगर चंगे !

ये कौनसा दौर है मेरा इस शहर में ?

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

जिंदगानी सजेगी...

जिंदगानी सजेगी, समझना मेरे पोषको के वचन,
कुंठित न होना ये तो पुरानी रीत और चलन,
डगमगाना मत सजनी, संग तुम्हारे आनंद मन !

 माना खुशियाँ पूरी नहीं, पर नहीं कोई गम,
मानो परिवार को, घुन्घरुवों की छम-छम,
साथ चलेंगे तो बजेंगे, कभी अती कभी कम !

 बेटा या बेटी लक्ष्य अगला, जिंदगी के कई रंग,
घर प्यारा, कृतव्य अपना, चलना आप संग-संग,
तभी जीत पाएंगे, ये रीती-रिवाजो की जंग !

जग में माता पिता और आप का नहीं कोई सम,
दिया तन-मन-धन और सोचू हो जाए न कुछ कम,
यह सोचकर मन भरे और छुपकर आँखे होती नम !

सपना नया नहीं, पर मेरे सपनो के कई रंग,
अक्षय हर्ष सी प्रतिष्ठा बढे, रिद्धि-सिद्धि रहे संग,
सुहाना हो मौसम और हर ऋतु का संग !

सजनी आप बने रहना युही साथी-हमदम,
सहते रहना हमारी आदतो को हरदम,
और अच्छे है अगर, तो मांगना जनम-जनम !

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

सँवरती तेरी तकदीरें हो...



मेरे हाथो की लकीरे हो,
सँवरती तेरी तकदीरें हो,
हर उलझन से तू परे हो !
...मेरी अदा का अलग है ढंग
  भरु तेरी जिंदगी के हर रंग
  रखूँगा चाहतो में मेरे संग !
लिखकर जताऊ या बोलकर,
आरजू है तू रहे मेरे लिए सजकर
और मै रखु तुम्हे हर-पल पलकों पर !

जिंदगी में चाहें....


जिंदगी में चाहें ग़मों कि बरसात हो,

उलझन भरी राहों के हालात हो,

तुम थामें रखना हाथ सजनी,

हो सकता है तुम्हारे  हाथो में करामात हो !


माना भाग्ये चलता है हाथ कि लकीरों से,

पर मत भूलना दुनियां भरी पड़ी फकीरों से,

तुम छूना दिल यकीन से सजनी,

काट डालेंगे हर अड़चन रूपी जंजीरों को !

हाला का प्याला










मदिरा करती पल दो पल मतवाला,
रफ्ता रफ्ता अक्ल को लगाती ताला,
लत इसकी निकाले दिवाला,
रखिये दूर हाला का प्याला !


क्यों पकड़ते हो प्याला,
क्यों पकड़ते हो मधुशाला,
हाला को जाये अगर टाला,
तो जीवन नहीं होगा काला !

एक कदम

एक कदम सोच की सफाई को,
मिटाने गन्दगी की खाई को !
एक कदम बईमानी की सफाई को,
इंसान की ईमान से सगाई को !
एक कदम रोगो की सफाई को,
बढ़ाने अपनी उम्र की लम्बाई को !
एक कदम कालाबाज़ारी की सफाई को,
मिटाने तड़पाती महंगाई को !
एक कदम भर्ष्टाचार की सफाई को,
मिटाने गरीबी और तंगाई को !
एक कदम नफरत की सफाई को,
मिटाने जातिवाद की लड़ाई को !

रजनीगंधा

रजनीगंधा फूल सी है मेरी मुस्कुराहटें
अक्सर लोग इसे अपनाते
और खुशियों को युहीं बाँट ले जाते !

पर होता हूँ जब मैं ग़मगीन
यही यार-प्यार, रिश्ते-नाते
छुपते-छिटकते रह जाते है इन-मिन !
जिन्दगी का क्या यही उसूल है
सिर्फ मेरी हँसी से उनके पैसे वसूल है
और दुःख में उनकी और निगाहे करुँ तो धुल है !
गर मेरी ये भूल है तो , ये मैं नहीं दोहराऊँगा,
सिर्फ मेरी खुशी नहीं बाँटुगा, और न उन्हें हँसाऊँगा,
मेरी ख़ुशी को अपनाने वालों को मेरे गम भी करने कबूल है

वो सुनामी का शोर

 एक मनभावन भौर
सागर कर रहा था शोर
शायद उसका ईशारा था
अपनी सखी नदियाँ की और !!
पहले तो बलखाती लहराती
छूती थी सागर का हर छोर
अब हो चली है दुबली पतली,
कौन बना है इसकी खुशी का चोर !!!
शायद इन्सा की भूख से सुख,
दम तोड़ती, सह रही अन्याय घोर,
देख इसे रोष भर रही है सागर की टोर,
और सुना रहा है वो सुनामी का शोर !!!!

काला रंग

कभी कभी काला रंग भी हो जाता है सुहाना,
देखे नभ में जब मेघों के संग इसका घुल जाना,
सुने जब कोयल की बोल में इसका गुनगुनाना,
जब सजनी की चोटी में सिमट के इतराना,
और उसकी अखियों में बसके हमें बनाये परवाना
कभी कभी काला रंग भी हो जाता है सुहाना !

सिसकियाँ

मधुशाला में जो लगाता डुबकियाँ
बूझ जाती है जिंदगानी में उनकी,
वो प्यार की जलती चिमनियाँ
और बचती है सिर्फ सिसकियाँ !